कभी सड़कों पर दौड़ते ट्रैक्टरों के थके हुए इंजन, ट्रकों के बेकार हो चुके ब्लॉक, पहियों के जंग लगे रिम, टूटे पिस्टन और ढीली पड़ चुकी रिंगें—जिन्हें अक्सर कबाड़ समझकर भुला दिया जाता है—, इन लोहे के जर्जर टुकड़ों को जब मध्य प्रदेश के इंजीनियर – कलाकार श्री पीके चौधरी की संवेदनशील दृष्टि और रचनात्मक हाथों ने छुआ, तो वे आकृतियों में ढलकर जीवंत हो उठे।अस्सी के दशक में रचे गए ये धातु शिल्प सिर्फ कलात्मक रचनाएँ नहीं हैं, बल्कि एक संदेश हैं—पुराने को नकारो मत, उसे नया जीवन दो। हर टेढ़ी-मेढ़ी चेन, हर घिसा हुआ पिस्टन अपने भीतर एक बीता हुआ समय और संघर्ष की कहानी समेटे हुए है। इन्हीं कहानियों को आकार मिला है हर आकृति में।
हरियाली से घिरी खुली जगह में, ऊँचे और घने पेड़ों की छांव में जब ये शिल्प खड़े होते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे प्रकृति और तकनीक एक-दूसरे का आलिंगन कर रहे हों। ये दृश्य न केवल आँखों को आकर्षित करता है, बल्कि मन को भी छू जाता है—याद दिलाता है कि सुंदरता सिर्फ नवीनता में नहीं, पुनर्जन्म में भी होती है।
हर आकृति एक कहानी है—संघर्ष की, श्रम की, और पुनर्जन्म की।
हरियाली के बीच खड़ी ये शिल्प रचनाएँ हमें सिखाती हैं कि सुंदरता हर कहीं छिपी है, बस नज़र चाहिए! जैसे ही आप चिनार पार्क के मेन गेट पर पहुँचते हैं,एक भव्य गणेश प्रतिमा आपका स्वागत करती है—शांति और शुभता के प्रतीक स्वरूप।आगे कदम बढ़ाइए… और प्रवेश कीजिए उस संसार में जहाँ लोहे, जर्जर धातु और पुराने कलपुर्जों से रची गई आकृतियाँ आपको विस्मित कर देती हैं।
जिरह-बख़्तर पहने, भालों से लैस योद्धा—मानो किसी युद्ध गाथा के पात्र हों।तने हुए फन के साथ खड़े शेषनाग — जैसे समय को रोकने आए हों।राजसी सवारी के लिए सजा हुआ हाथी , घोड़ा , पालकी — गर्व और गरिमा का प्रतीक।
सर पर बोझा लादे बच्चों को स्नेह से दुलारती माँ,झूले पर बैठे प्रेमी युगल,झरोखों से झाँकती युवतियाँ — हर मूर्ति एक कहानी कहती है।इन शिल्पों के बीच चलते हुए ऐसा लगता है जैसे आपकी कल्पना को पंख लग गए हों।यह केवल एक पार्क नहीं — यह स्मृतियों, संस्कृतियों और कल्पनाओं की खुली गैलरी है।
भोपाल की लिंक रोड पर फैला 50 एकड़ में चिनार पार्क, आज फिर से संवर रहा है।जहाँ पेड़ों की छाँव में सुकून के साथ कला की धड़कन भी गूंज रही है।चिनार पार्क का कायाकल्प केवल सौंदर्य का पुनर्निर्माण नहीं, बल्कि पर्यावरण, कला और पुनर्चक्रण का संगम है। “हज़ारों साल से नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती रही,बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा…”
शायर अल्लामा इक़बाल की ये पंक्तियाँ भोपाल के चिनार पार्क पर एकदम सटीक बैठती हैं।
लिंक रोड पर, अरेरा पहाड़ी की ढलानों पर फैला यह पार्क अब अपनी उम्र की लगभग आधी सदी पूरी कर रहा है।बरसों बरस यह हरियाली में लिपटा हुआ रहा, लेकिन लिंक रोड की तेज़ रफ़्तार और नज़रअंदाज़ी के बीच इसकी रौनक धीरे-धीरे फीकी पड़ती गई।
पर अब—शायद किसी दीदावर की नज़र पड़ गई है।यह सिर्फ सौंदर्यीकरण नहीं, यह एक सोच है।एक संदेश है — कि हर पुरानी चीज़ में एक नई संभावना छिपी होती है, बस एक दीदावर की नज़र चाहिए।
ये कहानी है उस धरोहर की… जो सिर्फ एक पार्क नहीं, इस शहर की श्वास नली भी है, भोपाल की धड़कन है।और हमारी सुबह की सैर की मंज़िल और पड़ाव भी है।
लेखक सुनील गंगराड़े मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और कृषक जगत के संपादक हैं










