सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार का बड़ा ऐलान, पेंशनर्स को यह होगा फायदा

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने रिटायर हो चुके सरकारी कर्मचारियों को खुशखबरी दी है. वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि 31 मार्च 2025 को या उससे पहले सेवानिवृत्त होने वाले एनपीएस के सब्सक्राइबर जिन्होंने कम से कम 10 साल की सेवा पूरी की है, वे यूनिवर्सल पेंशन स्कीम (यूपीएस) योजना के तहत अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं. यह लाभ एनपीएस के मौजूदा लाभों के अलावा होगा.

वित्त मंत्रालय के अनुसार, यूपीएस चुनने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों को एकमुश्त राशि मिलेगी. यह राशि उनकी आखिरी सैलरी और महंगाई भत्ते का दसवां हिस्सा होगी, जो प्रत्येक छह महीने की पूर्ण सेवा के लिए दी जाएगी.

इसके अलावा, मासिक अतिरिक्त राशि भी मिलेगी, जो यूपीएस के तहत स्वीकार्य पेंशन और महंगाई राहत (डीआर) से एनपीएस की एन्युटी राशि घटाकर निकाली जाएगी. कर्मचारियों को बकाया राशि भी दी जाएगी, जिस पर पीपीएफ दरों के हिसाब से साधारण ब्याज मिलेगा. इस लाभ के लिए दावा करने की आखिरी तारीख 30 जून 2025 है. वित्त मंत्रालय ने जनवरी 2025 में यूपीएस को नोटिफाई किया था. इस योजना के तहत कर्मचारियों को 50त्न सुनिश्चित पेंशन वादा किया गया है, जो सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीनों की औसत मूल सैलरी पर आधारित होगी. यह लाभ 25 साल की न्यूनतम सेवा पूरी करने वाले कर्मचारियों को मिलेगा.

अलग-अलग कर्मियों की नहीं हो सकती भिन्न रिटायरमेंट आयु

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि कर्मचारियों के लिए उनकी विकलांगता की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग सेवानिवृत्ति आयु निर्धारित करना अनुच्छेद 14 के तहत असंवैधानिक भेदभाव है. न्यायालय ने मामले में लोकोमोटर-विकलांग इलेक्ट्रीशियन को राहत भी प्रदान की, जिसे 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के लिए बाध्य किया गया था, जबकि दृष्टिबाधित कर्मचारियों को 60 वर्ष तक सेवा करने की अनुमति दी गई थी. न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांग कर्मचारियों के बीच इस तरह का भेदभाव मनमाना है. अदालत ने कहा, सभी तरह की मानक दिव्यांगताओं के लिए एक समान सेवानिवृत्ति लाभ अनिवार्य है.

कर्मचारी नहीं चुन सकता रिटायरमेंट की उम्र

दूसरी ओर कोर्ट ने यह भी कहा कि, किसी कर्मचारी को अपने रिटायरमेंट की आयु निर्धारित करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है. यह अधिकार राज्य के पास है, जिसे अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का पालन करते हुए उचित रूप से इसका प्रयोग करना चाहिए. कोर्ट ने कहा,किसी कर्मचारी को इस बात का कोई मौलिक अधिकार नहीं है कि वह किस आयु में रिटायर होगा.

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की. मामले में अपीलकर्ता लोकोमोटर-विकलांग इलेक्ट्रीशियन है. उसको 58 वर्ष की आयु में रिटायर होने के लिए मजबूर किया गया था, जबकि इसी तरह के दृष्टिबाधित कर्मचारियों को 60 वर्ष तक सेवा करने की अनुमति दी गई थी.

राज्य सरकार ने बदली थी रिटायरमेंट की उम्र

गौरतलब है दिनांक 29.03.2013 के कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से दृष्टिबाधित कर्मचारियों के रिटायरमेंट की आयु बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी गई थी. बाद में राज्य सरकार द्वारा 04.11.2019 को इस एमओयू तो वापस ले लिया गया, जिसमें रिटायरमेंट की आयु 58 वर्ष रखी गई. अपीलकर्ता 18.09.2018 को रिटायर हो गया. विवाद तब हुआ जब अपीलकर्ता ने मेमोरेंडम वापस लेने की तिथि से परे यानी 04.11.2019 यानी को 60 वर्ष की आयु पूरी होने तक रोजगार जारी रखने का दावा किया.

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